Shakambhari Chalisa | शाकम्भरी चालीसा

Shakambhari Chalisa | शाकम्भरी चालीसा

Shakambhari Devi is an incarnation of Goddess Parvati. She is also called “The bearer of the greens” and during the famine, Goddess Parvati comes down as Shakambhari and gives vegan food to the hungry. She is the symbol of Botanical energy who helped living creatures to survive on plants (Shaka-ahar) when there was no water available on earth. Recite the Shakambhari Chalisa to get mother blessing and fill your life with happiness and wealth.

Shakambhari Devi Chalisa in Hindi

|| दोहा ||

दाहिने भीमा ब्रामरी अपनी छवि दिखाए |
बाई ओर सतची नेत्रो को चैन दीवलए |
भूर देव महारानी के सेवक पहरेदार |
मा शकुंभारी देवी की जाग मई जे जे कार ||

|| चौपाई ||

जे जे श्री शकुंभारी माता | हर कोई तुमको सिष नवता ||
गणपति सदा पास मई रहते | विघन ओर बढ़ा हर लेते ||
हनुमान पास बलसाली | अगया टुंरी कभी ना ताली ||

मुनि वियास ने कही कहानी | देवी भागवत कथा बखनी ||
छवि आपकी बड़ी निराली | बढ़ा अपने पर ले डाली ||

अखियो मई आ जाता पानी | एसी किरपा करी भवानी ||
रुरू डेतिए ने धीयाँ लगाया | वार मई सुंदर पुत्रा था पाया ||

दुर्गम नाम पड़ा था उसका | अच्छा कर्म नही था जिसका ||
बचपन से था वो अभिमानी | करता रहता था मनमानी ||

योवां की जब पाई अवस्था | सारी तोड़ी ध्ृम वेवस्था ||
सोचा एक दिन वेद छुपा लू | हर ब्रममद को दास बना लू ||

देवी देवता घबरागे | मेरी सरण मई ही आएगे ||
विष्णु शिव को छोड़ा उसने | ब्रहांमजी को धीयया उसने ||

भोजन छोड़ा फल ना खाया |वायु पीकेर आनंद पाया ||
जब ब्रहाम्मा का दर्शन पाया | संत भाव हो वचन सुनाया ||

चारो वेद भक्ति मई चाहू | महिमा मई जिनकी फेलौ ||
ब्ड ब्रहाम्मा वार दे डाला | चारो वेद को उसने संभाला ||

पाई उसने अमर निसनी | हुआ प्रसन्न पाकर अभिमानी ||
जैसे ही वार पाकर आया | अपना असली रूप दिखाया ||

ध्ृम धूवजा को लगा मिटाने | अपनी शक्ति लगा बड़ाने ||
बिना वेद ऋषि मुनि थे डोले | पृथ्वी खाने लगी हिचकोले ||

अंबार ने बरसाए शोले | सब त्राहि त्राहि थे बोले ||
सागर नदी का सूखा पानी | कला दल दल कहे कहानी ||

पत्ते बी झड़कर गिरते थे | पासु ओर पाक्सी मरते थे ||
सूरज पतन जलती जाए | पीने का जल कोई ना पाए ||

चंदा ने सीतलता छोड़ी | समाए ने भी मर्यादा तोड़ी ||
सभी डिसाए थे मतियाली | बिखर गई पूज की तली ||

बिना वेद सब ब्रहाम्मद रोए | दुर्बल निर्धन दुख मई खोए ||
बिना ग्रंथ के कैसे पूजन | तड़प रहा था सबका ही मान ||

दुखी देवता धीयाँ लगाया | विनती सुन प्रगती महामाया ||
मा ने अधभूत दर्श दिखाया | सब नेत्रो से जल बरसया ||

हर अंग से झरना बहाया | सतची सूभ नाम धराया ||
एक हाथ मई अन्न भरा था | फल भी दूजे हाथ धारा था ||

तीसरे हाथ मई तीर धार लिया | चोथे हाथ मई धनुष कर लिया ||
दुर्गम रक्चाश को फिर मारा | इस भूमि का भर उतरा ||

नदियो को कर दिया समंदर | लगे फूल फल बाग के अंदर ||
हारे भरे खेत लहराई | वेद ससत्रा सारे लोटाय ||

मंदिरो मई गूँजी सांख वाडी | हर्षित हुए मुनि जान प्रडी ||
अन्न धन साक को देने वाली | सकंभारी देवी बलसाली ||
नो दिन खड़ी रही महारानी | सहारनपुर जंगल मई निसनी ||

|| दोहा ||

सकंभारी देवी की महिमा अपरंपार |
ओम’ इन्ही को भाज रहा है सारा संसार ||

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Simmi Kamboj

Simmi Kamboj is the Founder and Administrator of Ritiriwaz, your one-stop guide to Indian Culture and Tradition. She had a passion for writing about India's lifestyle, culture, tradition, travel, and is trying to cover all Indian Cultural aspects of Daily Life.